जीवनसाथी का चेहरा और गूंज उठीं मंगलध्वनियां — हर घर में दिखा आस्था और प्रेम का अद्भुत संगम
गरियाबंद। शुक्रवार की रात गरियाबंद नगर में करवा चौथ का पर्व पूरे श्रद्धा, उत्साह और आस्था के साथ मनाया गया। दिनभर निर्जला व्रत रखकर सुहागिन महिलाओं ने पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना की। रात लगभग 9:30 बजे जैसे ही आसमान में चांद ने दर्शन दिए, शहर के हर घर में पूजा की थालियाँ सजीं और महिलाओं ने छलनी से चंद्रमा के दर्शन कर अपने पतियों के हाथों से जल ग्रहण किया।
इसी कड़ी में वार्ड क्रमांक 15 निवासी गृहणी वर्षा तिवारी ने अपने पूरे परिवार के साथ पूरे विधि-विधान और रीति-रिवाजों के साथ करवा चौथ मनाया। उन्होंने बताया कि, “यह व्रत न केवल पति की लंबी उम्र के लिए होता है, बल्कि यह विश्वास और समर्पण का प्रतीक भी है। सालों से हम पूरे परिवार के साथ इसे परंपरा की तरह निभाते आ रहे हैं।”

वर्षा तिवारी ने आगे कहा कि “सुबह मां से सरगी ग्रहण करने के बाद पूरे दिन निर्जला उपवास रखा। जैसे ही चांद निकला, छलनी से चंद्र दर्शन कर पति के हाथों जल ग्रहण किया — यह पल हर साल की तरह आज भी भावनाओं से भरा हुआ था।”
वहीं, परिवार की बुजुर्ग महिला श्यामकली तिवारी ने करवा चौथ की पौराणिक कथा सुनाते हुए कहा कि, “इस व्रत की महिमा इतनी अद्भुत है कि जो भी महिला इसे पूर्ण निष्ठा और श्रद्धा से करती है, उसे अखंड सौभाग्य का वरदान मिलता है।”
शयामकाली तिवारी ने बताया कि “करवा चौथ का व्रत सिर्फ चंद्रदर्शन तक सीमित नहीं, बल्कि यह स्त्री के प्रेम, त्याग और आस्था का जीवंत उदाहरण है।”
करवा चौथ के दिन सुहागिनें ये व्रत कथा जरूर सुनती-सुनाती हैं। कथा इस प्रकार है…प्राचीनकाल में एक साहुकार के सात पुत्र और एक पुत्री थी। जब पुत्री बड़ी हुई तो उसका विवाह कर दिया गया। जब कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी आई तो कन्या ने करवा चौथ का व्रत रखा। लेकिन सात भाइयों की लाडली बहन को चंद्रोदय से पहले ही भूख सताने लगी। उसका मुरझाया हुआ चेहरा उसके भाइयों से देखा नहीं गया। अत: वे कुछ उपाय सोचने लगे।
उन्होंने अपनी बहन से चंद्रोदय से पहले ही भोजन करने को कहा लेकिन वह नहीं मानी। उसने कहा जब तक चांद नहीं निकलेगा वह भोजन नहीं करेगी। तब भाइयों ने एक योजना बनाई और पीपल के वृक्ष की आड़ में प्रकाश करके कहा- देखो ! चंद्रोदय हो गया। उठो, अर्घ्य देकर भोजन करो। बहन भाइयों की ये चाल समझ नहीं पाई और उसने नकली चांद को अर्घ्य देकर अपना व्रत खोल लिया। भोजन करते ही उसका पति मर गया। वह रोने चिल्लाने लगी। दैवयोग से उस समय इन्द्राणी देवदासियों के साथ वहां से जा रही थीं। रोने की आवाज सुन कर वह साहुकार की पुत्री के पास गईं और उससे रोने का कारण पूछा।
उस कन्या ने सब हाल कह सुनाया। तब इन्द्राणी ने कहा- ‘तुमने करवा चौथ के व्रत में चंद्रोदय से पूर्व ही अन्न-जल ग्रहण कर लिया, इस कारण ही ऐसा हुआ है। अब यदि तुम मृत पति की सेवा करती हुई बारह महीनों तक प्रत्येक चौथ को यथाविधि व्रत करोगी, फिर करवा चौथ को विधिवत गौरी, शिव, गणेश, कार्तिकेय सहित चंद्रमा का विधिवत पूजन करोगी और चंद्र उदय के बाद अर्ध्य देकर अन्न-जल ग्रहण करोगी तो तुम्हारे पति अवश्य जीवित हो उठेंगे।’
ब्राह्मण कन्या ने ठीक ऐसा ही किया। उसने 12 माह की चौथ सहित विधिपूर्वक करवा चौथ का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उनका मृत पति जीवित हो गया। कहते हैं जो भी महिला करवा चौथ का व्रत विधि विधान रखती है उसके पति को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
करवा चौथ के अवसर पर पूरे नगर में आस्था और सौंदर्य का अद्भुत संगम देखने को मिला — सुहागिनों ने पारंपरिक परिधानों में सोलह श्रृंगार कर पूजा की, घरों में मंगल गीत गूंजे और चांद की पहली किरण के साथ हर चेहरे पर विश्वास और प्रेम की रोशनी खिल उठी।

Satyanarayan Vishwakarma serves as the Chief Editor of Samwad Express, a Hindi-language news outlet. He is credited as the author of articles covering topics such as local and regional developments



