गरियाबंद। शिक्षा सत्र शुरू हुए ढाई माह बीत चुके हैं, लेकिन गरियाबंद जिले के स्कूलों में अब तक अधिकांश बच्चों को पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध नहीं हो पाई हैं। नतीजा यह है कि सैकड़ों बच्चे बिना किताबों के ही पढ़ाई करने को मजबूर हैं। लगातार दूसरी बार मासिक परीक्षा होने जा रही है, लेकिन छात्र-छात्राओं के हाथों में किताबें ही नहीं हैं। यह हालात अभिभावकों, बच्चों और शिक्षकों को सोचने पर मजबूर कर रहे हैं कि आखिर बिना पढ़े बच्चे परीक्षा कैसे देंगे।
सरकार के दावे बनाम हकीकत
छत्तीसगढ़ शासन हर साल कक्षा पहली से बारहवीं तक के सभी बच्चों को निःशुल्क पाठ्य पुस्तक उपलब्ध कराने का दावा करता है। पाठ्य पुस्तक निगम की जिम्मेदारी है कि शिक्षा सत्र शुरू होने से पहले यानी 16 जून तक स्कूलों में किताबें पहुंच जाएं। लेकिन सत्र शुरू होने के ढाई महीने बाद भी गरियाबंद जिले के अनेक स्कूलों में बच्चे किताबों से वंचित हैं।
कक्षा छठवीं के बच्चों को हिन्दी, अंग्रेजी और विज्ञान, कक्षा सातवीं में संस्कृत, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान, कक्षा आठवीं में विज्ञान और सामाजिक विज्ञान भाग-1, जबकि कक्षा नौवीं और दसवीं में अंग्रेजी की किताबें अब तक नहीं बंट पाई हैं। इस वजह से न सिर्फ पढ़ाई बाधित है बल्कि बच्चों का बुनियादी ज्ञान भी प्रभावित हो रहा है।
आदिवासी बच्चों पर खास असर
जिले के दूरस्थ और आदिवासी बहुल इलाकों के बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। जहां पहले से ही शिक्षा की सुविधाएं सीमित हैं, वहां किताबों की कमी ने पढ़ाई को और मुश्किल बना दिया है। शिक्षक भी नए पाठ्यक्रम और किताबों की कमी के चलते पुराने पाठ्यक्रम से पढ़ाई कराने में असमर्थ हैं।
कई बार शिक्षक और बच्चों ने मिलकर ब्लॉक और जिला शिक्षा कार्यालय को समस्या से अवगत कराया, लेकिन अधिकारियों ने इसे “पाठ्य पुस्तक निगम का मामला” बताकर जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया।
कौन है जिम्मेदार?
अब सवाल यह उठता है कि बच्चों के भविष्य से हो रहे इस खिलवाड़ का जिम्मेदार कौन है? शासन और विभाग के दावे और जमीनी हकीकत में बड़ा अंतर साफ नजर आ रहा है। किताबें नहीं मिलने से छात्रों की पढ़ाई, परीक्षा और भविष्य पर सीधा असर पड़ रहा है।
जिला शिक्षा अधिकारी का बयान
गरियाबंद जिला शिक्षा अधिकारी जगजीत सिंह धीर ने कहा—
“इस संबंध में पूरी जानकारी भेजी जा चुकी है। टेस्ट बुक कॉर्पोरेशन द्वारा ही पुस्तक का वितरण किया जाता है, इसमें जिला शिक्षा विभाग की कोई भूमिका नहीं है। निश्चित रूप से पढ़ाई प्रभावित हो रही है, लेकिन यह मामला राज्य स्तर और टेस्ट बुक कॉर्पोरेशन से जुड़ा हुआ है।”
बच्चों का भविष्य अधर में
पुस्तकों की अनुपलब्धता का सबसे बड़ा खामियाजा बच्चे ही भुगत रहे हैं। एक तरफ परीक्षाएं हो रही हैं, दूसरी ओर बच्चों के पास पढ़ने का साधन ही नहीं है। सवाल यह है कि जब शासन स्वयं दावा करता है कि “हर बच्चे तक समय पर किताब पहुंचेगी” तो आखिर जिम्मेदारी तय क्यों नहीं की जा रही है।
यदि जल्द ही समस्या का समाधान नहीं हुआ तो आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह प्रभावित होगी और इसका असर उनके भविष्य पर भी पड़ेगा।

Satyanarayan Vishwakarma serves as the Chief Editor of Samwad Express, a Hindi-language news outlet. He is credited as the author of articles covering topics such as local and regional developments



