सत्यनारायण विश्वकर्मा संवाद एक्सप्रेस
गरियाबंद । रक्षाबंधन का इतिहास बहुत पुराना है और पौराणिक कथाओं और लोककथाओं में इसके विभिन्न प्रसंग मिलते हैं। मुख्य रूप से, यह त्योहार भाई-बहन के अटूट प्रेम और बंधन का प्रतीक है, जहाँ बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधकर उसकी सलामती और खुशहाली की कामना करती है, और भाई अपनी बहन को हर संकट से बचाने का वचन देता है।
इंद्र और इंद्राणी
एक कथा के अनुसार, देवताओं और दानवों के युद्ध में, जब देवता हार रहे थे, तब इंद्राणी ने इंद्र की कलाई पर रक्षा सूत्र (राखी) बांधा था। इससे इंद्र को साहस मिला और उन्होंने युद्ध जीता।
भगवान कृष्ण और द्रौपदी
एक अन्य कथा में, जब भगवान कृष्ण की उंगली कट गई थी, तो द्रौपदी ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर उनकी उंगली पर बांध दिया था। कृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया था कि वे हमेशा उसकी रक्षा करेंगे।
राजा बलि और लक्ष्मी
एक कथा के अनुसार, जब विष्णु भगवान ने राजा बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया, तब लक्ष्मी जी ने राजा बलि को राखी बांधकर अपना भाई बनाया और विष्णु जी को अपने साथ ले गईं।
बंगाल विभाजन
1905 में, रवींद्रनाथ टैगोर ने बंगाल विभाजन के दौरान हिंदुओं और मुसलमानों को एकजुट करने के लिए रक्षाबंधन का त्योहार मनाया था।
रानी कर्णावती और हुमायूं
एक ऐतिहासिक घटना में, रानी कर्णावती ने मेवाड़ की रक्षा के लिए मुगल बादशाह हुमायूं को राखी भेजी थी और उनसे मदद मांगी थी।
वर्तमान में:
आजकल, रक्षाबंधन भाई-बहन के प्रेम और बंधन का त्योहार है, जिसे पूरे भारत में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं, और भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं और उनकी रक्षा का वचन देते हैं।
रक्षाबंधन का त्योहार न केवल भाई-बहन के रिश्ते को मजबूत करता है, बल्कि यह एकता, प्रेम और सुरक्षा की भावना को भी बढ़ावा देता है।

Satyanarayan Vishwakarma serves as the Chief Editor of Samwad Express, a Hindi-language news outlet. He is credited as the author of articles covering topics such as local and regional developments



