गरियाबंद — कहते हैं “विकास समय लेता है”, लेकिन गरियाबंद में तो वक्त भी अब ट्रांसफर हो चुका है। जनवरी में जिला बने 14 साल पूरे होंगे, पर हालात ऐसे हैं जैसे गरियाबंद अब भी “प्रस्तावित जिला” की ही कैटेगरी में अटका पड़ा हो।
राज्योत्सव की तैयारी गांधी मैदान में जोरों पर है, मंच सजेगा, भाषण होंगे, और फिर वही पुराना राग – “विकास के नए युग की शुरुआत”। मगर जनता अब पूछ रही है – कब तक?
कलेक्टर बदलो, विकास बचाओ योजना
13 साल में 13 कलेक्टर। यानी औसतन हर साल एक नया कलेक्टर और वही पुरानी फाइल।
फाइलें इतनी घूम चुकी हैं कि अब “पासिंग द फाइल” को गरियाबंद का लोकनृत्य घोषित कर देना चाहिए।
कभी पहारे साहब ने सख्ती दिखाई, कभी अमित कटारिया ने मॉडल डिस्ट्रिक्ट का सपना दिखाया।
नम्रता गांधी और आकाश छिकारा जैसे नाम उम्मीद की तरह आए और ट्रांसफर की तरह चले गए।
अब भगवान सिंह उइके आए हैं—नाम में ही भगवान हैं, तो जनता कह रही है “अब शायद चमत्कार ही हो जाए”।

अधूरे सेटअप का पूरा अनुभव
गरियाबंद में सरकारी विभाग ऐसे हैं जैसे अधूरी इमारत पर “काम प्रगति पर है” का बोर्ड।
टाउन एंड कंट्री प्लानिंग सिर्फ नाम में है, नजूल में नाम का कोई नहीं, और डायवर्सन की फाइलें ऐसी लंबी कि लोग अब उसे “डायवर्सन यात्रा” कहने लगे हैं।
छोटे से काम के लिए भी रायपुर जाना पड़ता है — यानी “राजधानी से सीधा जुड़ा जिला”।
स्वास्थ्य में सांस, शिक्षा में आराम, रोजगार में विराम
जिला अस्पताल में डॉक्टर कम और बहाने ज़्यादा हैं।
स्कूलों में शिक्षक ऐसे लुप्त हैं जैसे सरकारी योजना की समयसीमा।
और रोजगार? अब गरियाबंद के युवाओं को “रायपुर-दुर्ग बस टाइमटेबल” याद है, नौकरी का नहीं।

न्याय भी ट्रांसफर पर
13 साल बाद भी जिला न्यायालय नहीं, महिला थाना नहीं, एसटी-एससी न्यायालय नहीं।
केस की फाइलें रायपुर में और न्याय की उम्मीद हवा में।
लगता है अब कोर्ट भी कह रहा है — “फाइल भेज दी है, आदेश बाद में मिलेगा।”
जनता की आवाज़ – “मैं गरियाबंद हूं, मैं विकास चाहता हूं”
राज्योत्सव के मंच से फिर वही नारे गूंजेंगे, वही ताली, वही भाषण।
पर भीड़ में एक आवाज़ फिर उठेगी —
“मैं गरियाबंद हूं… मैं विकास चाहता हूं, ट्रांसफर नहीं।”
13 कलेक्टर, 13 अध्याय और एक अधूरी कहानी
गरियाबंद का इतिहास अब सरकारी फाइलों का सिलेबस बन चुका है।
कलेक्टर बदले, तारीखें बदलीं, लेकिन फाइलें जस की तस।
विकास की फाइल अब भी रायपुर की किसी अलमारी में कह रही है —
“डाक से भेजा गया, अभी प्राप्त नहीं हुआ।”
14 साल बाद गरियाबंद आज भी “विकास का प्रतीक” नहीं, बल्कि “विकास का प्रतीक्षा कक्ष” बन गया है।
अब सवाल यह नहीं कि —सवाल यह है कि विकास आएगा कब और फाइल लौटेगी कब।

Satyanarayan Vishwakarma serves as the Chief Editor of Samwad Express, a Hindi-language news outlet. He is credited as the author of articles covering topics such as local and regional developments



