अमलीपदर। आधुनिक भारत की प्रगति और सरकारी दावों के बीच एक बार फिर गरीबी और सिस्टम की बेरुखी का दर्दनाक चेहरा सामने आया है। अमलीपदर क्षेत्र के नयापारा ग्राम की 60 वर्षीय बुजुर्ग महिला इच्छाबाई पटेल की मौत के बाद उनका शव अस्पताल से घर तक लाने के लिए परिजनों को कई तरह की जिल्लत झेलनी पड़ी। अंततः मजबूर होकर गरीब परिवार ने खटिया पर शव रखकर पैदल ही गांव तक ले जाने का फैसला किया।
इलाज के दौरान मौत, शव वाहन से इनकार
जानकारी के अनुसार, इच्छा बाई की तबीयत अचानक बिगड़ने पर परिजन 108 एंबुलेंस की मदद से उन्हें अमलीपदर सरकारी अस्पताल लेकर पहुंचे। इलाज के दौरान शनिवार सुबह करीब 10 बजे इच्छा बाई का निधन हो गया। इसके बाद शोकग्रस्त परिजनों ने अस्पताल प्रबंधन और एंबुलेंस कर्मचारियों से शव को गांव तक पहुंचाने की गुहार लगाई, लेकिन कर्मचारियों ने साफ शब्दों में कह दिया कि शव ले जाने की अनुमति उन्हें नहीं है और ऐसा करना उनकी नौकरी पर खतरा बन सकता है।

निजी वाहन चालकों ने मांगी मोटी रकम
निराश परिजनों ने अस्पताल से लेकर आसपास के क्षेत्रों में मौजूद 20 से अधिक निजी वाहन चालकों से संपर्क किया। लेकिन किसी ने भी शव ले जाने के लिए हामी नहीं भरी। जिन 1-2 वाहन मालिकों ने तैयारियां जताई, उन्होंने 4 से 5 हजार रुपये तक की मांग कर दी। आर्थिक रूप से बेहद कमजोर परिवार इतनी बड़ी रकम जुटाने में असमर्थ था।
मजबूर होकर उठाना पड़ा खटिया
आखिरकार थके-हारे परिजन खटिया लेकर अस्पताल पहुंचे और मृतका के शव को उस पर रखकर पैदल ही गांव की ओर निकल पड़े। बाजार से गुजरते हुए इस दृश्य को जिसने भी देखा, उसकी आंखें नम हो गईं। यह नजारा न केवल परिवार के दर्द को बयां करता है बल्कि स्वास्थ्य व्यवस्था की संवेदनहीनता पर भी बड़ा सवाल खड़ा करता है।
अमलीपदर में लगातार हो रही हैं ऐसी घटनाएं
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह पहली घटना नहीं है। इससे पहले भी शव वाहन की अनुपलब्धता के कारण परिजन ट्रैक्टर या अन्य साधनों से शव ढोने को मजबूर हुए हैं। लेकिन खटिया पर शव लेकर पैदल निकलना शायद सबसे दर्दनाक और शर्मनाक उदाहरण है।
सरकार के दावों पर सवाल
जहां एक ओर सरकार विज्ञान और तकनीक की उपलब्धियों का बखान करते हुए चांद पर पहुंचने का दावा करती है, वहीं दूसरी ओर अमलीपदर जैसे बड़े स्वास्थ्य केंद्र में शव वाहन तक उपलब्ध न होना, विकास के दावों की पोल खोल देता है।
आमजन में आक्रोश
इस घटना के बाद ग्रामीणों और आमजन में आक्रोश है। लोगों का कहना है कि स्वास्थ्य विभाग की ऐसी लापरवाही अस्वीकार्य है और इसकी जवाबदेही तय होनी चाहिए। गरीब परिवारों की मजबूरी और तंत्र की असंवेदनशीलता का यह जीता-जागता उदाहरण स्वास्थ्य सेवाओं की जमीनी हकीकत को सामने लाता है।

Satyanarayan Vishwakarma serves as the Chief Editor of Samwad Express, a Hindi-language news outlet. He is credited as the author of articles covering topics such as local and regional developments



