गरियाबंद। इस बार राज्योत्सव में सब कुछ था — झंडा, नाच, गाना, भाषण, माइक की चीखें — बस “व्यवस्था” नाम की चीज छुट्टी पर थी। गांधी मैदान में राज्योत्सव का उद्घाटन तो धूमधाम से हुआ, पर धुआं ज्यादा था या धूम, ये कोई तय नहीं कर पाया।
मुख्य अतिथि दयालदास बघेल जैसे-तैसे मंच तक पहुंचे, जहां नेताओं की नाराजगी पहले से कुर्सियों पर कब्जा जमाए बैठी थी। कुछ जनप्रतिनिधि तो मंच की हालत देखकर सीधे “स्वागत भाषण” की जगह “स्वगृह” लौट गए।
मंच पर बैठे नेताओं के चेहरे पर मुस्कान नहीं, बल्कि “कुर्सी का डिजाइन किसने चुना?” जैसे गंभीर सवाल तैरते दिखे। वहीं जनता को भरोसा था कि अगर अव्यवस्था में भी कोई प्रतियोगिता होती, तो गरियाबंद जिला इस साल स्वर्ण पदक जरूर लाता।

बैनर-पोस्टर की गुमशुदगी ने नेताओं को गहरा सदमा दिया। बताया गया कि कई स्थानीय नेतागण अपनी फोटो न दिखने से खुद को “राज्योत्सव से बहिष्कृत” महसूस कर रहे थे। सूत्रों के अनुसार कुछ ने तो तय कर लिया है कि अगले साल खुद का पोस्टर लगाकर फिर प्रशासन को “आश्चर्य उपहार” देंगे।
मीडिया सेक्शन में भी व्यवस्था का हाल ऐसा था कि पत्रकारों ने खुद को “न्यूज़ से पहले न्यूज” बना लिया। किसी को माइक नहीं मिला, किसी को कुर्सी — और जिन्हें कुछ भी नहीं मिला, उन्होंने ट्वीट कर लिया।

राजिम विधायक रोहित साहू ने मान लिया कि “व्यवस्था में थोड़ी कमी रही है।” अब ये कमी माइक की थी, मंच की या मन की — ये उन्होंने स्पष्ट नहीं किया।
खैर, इस बार का राज्योत्सव जनता के लिए नहीं, सब्र की परीक्षा के लिए याद किया जाएगा। उम्मीद है अगली बार मंच की पॉलिश के साथ-साथ प्रबंधन का भी “टचअप” हो जाएगा — वरना गरियाबंद का राज्योत्सव “राज्योत्सव” कम और “व्यवस्था दिवस” ज्यादा कहलाएगा।

Satyanarayan Vishwakarma serves as the Chief Editor of Samwad Express, a Hindi-language news outlet. He is credited as the author of articles covering topics such as local and regional developments



